Right to protest in india | Right to protest is a fundamental right in india

0
843

right-to-protest indian constitution

सभा एवं सम्मेलन की स्वतंत्रता

क्या भारत में आंदोलन करना एक मुलभुत अधिकार है?

 

सभा एवं सम्मेलन की स्वतंत्रता

Right to protest is a fundamental right. विरोध ,असहमति का अधिकार लोकतंत्र शासन व्यवस्था की आधारशिला है ।प्रत्यके लोकतांत्रिक सरकार इसको महत्व देती हैं ।

अनुच्छेद 19(1)(ख)और खण्ड(3)

अनुच्छेद 19(1)(ख)भारतीय नागरिको को शान्तिपूर्वक बिना हथिहार के सभा करने की स्वतंत्रता देता है ।इसमे सार्वजनिक सम्मेलनो ,सभाओ,एवं जुलूसो का अधिकार भी सम्मिलित हैं ।यह अधिकार लोकतंत्र की आत्मा है ।यह अभिव्यक्ति की आज़ादी का ही भाग माना जाता है क्योकी शांतिपूर्ण आन्दोलन भारत की स्वतंत्रता आन्दोलन की नीव रहे है ।महात्मा गाँधी के विचारों की स्वतंत्रता व दृढ़ निश्चय ही इसका मुल रहा है । सभा एव आन्दोलन कर द्वारा ही लोकतंत्र मे सरकार का विरोध किया जा सकता हैं । सभा करनें का अधिकार नहीं होगा तो व्यक्तियो को अपने विचारो के आदान प्रदान का अवसर प्राप्त नही होगा।इंग्लेंड में भी यह अधिकार अभिव्यक्ति की आजादी का अंग माना जाता है ।

अमेरिकन संविधान की भांति भारतीय संविधान लोगों को शस्त्र रखने या उसे सभा में ले जाने का कोई सामान्य अधिकार प्रदान नहीं करता भारत में वर्तमान शस्त्र अधिनियम जुलूस या बिना लाइसेंस खतरनाक वस्तुओं को रखने वाले जाने को मना करता है देशद्रोह सभाजी नियम 1911 ऐसे सार्वजनिक सम्मेलनों को जो राज ग्रुप साथिया जन शांति को भंग करते का निषेध करता है राज्य सरकार इसी प्रांत या उसके किसी भाग को सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर सकती है उसके पश्चात इस क्षेत्र में कोई भी सार्वजनिक सभा यह सम्मेलन या किसी विषय पर विचार विमर्श किया ऐसे विषयों से संबंधित लेख या प्रकाशन का प्रदर्शन या प्रचार नहीं किया जा सकता है जो लोग व्यवस्था फैलाता या उस आता हो जब तक कि ऐसी सभा करने की सूचना जिलाधीश या पुलिस कमिश्नर को 3 दिन पूर्व न दे दी गई हो और उनसे सभा करने की लिखित अनुचित रूप में अनुमति न प्राप्त कर ली हो

भारत मे “राईट टू प्रोटेस्ट” का अधिकार एक सविधानिक अधिकार है । जिस पर अन्य अधिकारो की भाती निर्बंधन लागय जा सकते हैं अनु,19(3) के अधीन।

right to protest

सभा एवं सम्मेलन की स्वतंत्रता

विरोध के अधिकार पर निर्बंधन
-सभा शान्तिपूर्वक होनी चाहिये
-सभा बिना हथियारों के होनी चाहिये
-अनुच्छेद 19के खण्ड (3)के अन्तर्गत राज्य इस लोक व्यव्स्था के हित मे युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है ।

आजकल आंदोलन शब्द बहुत ज्यादा चर्चा में चल रहा है क्योंकि हमारे देश के कई राज्यों के किसान दिल्ली हरियाणा बॉर्डर पर किसान बिलों के विरोध में आंदोलन कर रहे है। लेकिन आंदोलन से संबंधित वैधानिक नियम तथा कानून क्या है? क्या आंदोलन करना वैधानिक रूप से सही है तथा इसके लिए किस प्रकार के नियम तथा कानून बनाए गए है। इसी के बारे में हम आज चर्चा करेंगे –

वैसे सामान्य तौर पर आंदोलन करने के 2 मुख्य फायदे है – एक ओर जहां किसी व्यक्ति संगठन या समुदाय विशेष को अपनी आवाज़ उठाने का मौका मिलता है तो वहीं दूसरी और सरकार को भी यह पता चलता है कि उनके बनाए गए नियमों में क्या ख़ामियाँ है तथा इनमें क्या सुधार हो सकता है।

हमारे देश भारत में प्राचीन काल से ही अनेक प्रकार के आंदोलन होते रहे है। आज से 72 साल पहले तक तो हमारा देश एक ब्रिटिश उपनिवेश था।

आजादी के बाद हमारे पूर्वजों ने स्वतंत्रता का स्वाद चखा क्योंकि अनेक स्वतंत्रता सैनानियों ने आन्दोलन मे भाग लेकर इस स्वतंत्रता को हासिल किया था।

देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने लोगो को शांतिपूर्वक आंदोलन का एक पाठ पढ़ाया था।

इसलिए अगर हम 1905 के स्वदेशी आंदोलन की बात करे या फिर 1930 के सत्याग्रह की बात करे – दोनों आंदोलन शांतिपूर्वक तरीके से ही हुए।

गेर कानूनी होने पर निम्न प्रावधान लगाए जा सकते है ।

भारतीय दंड संहिता 1860 का अध्याय-8,धारा-141,142,143,144,145आदि
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 का अध्याय 8,10,
धारा 107,129,130,131,144,144(a)
पुलिस एक्ट 1861के तहत

 

 

आंदोलन के अधिकार के साथ कर्तव्य भी जुडे होते हैं :-

 

अनुच्छेद 51A के अनुसार प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि वह सार्वजनिक संपत्तियों की रक्षा करे तथा आंदोलन के दौरान हिंसक गतिविधियों से बचे।

अनुच्छेद 19(1)(b) में यह कहा गया है कि आप बिना हथियारों के किसी भी जगह शांतिपूर्वक इकट्ठा हो सकते सभा का आयोजन कर सकते है। इसलिए शांतिपूर्वक आंदोलन का अधिकार भारतीय नागरिकों को प्राप्त है।

अनुच्छेद 19(2) में शांतिपूर्वक बिना हथियारों के आंदोलन के बारे में कुछ निर्बंधन का वर्णन किया गया है।

 

प्रमुख घटनाए :-

  • भारत छोडो आन्दोलन
  • सत्याग्रह
  • किसान आन्दोलन
  • CAA,NRC विरोध आन्दोलन
  • चिपको आंदोलन

सुप्रीम कोर्ट ने सन 2012 में “रामलीला मैदान इंसिडेंट बनाम गृह सचिव, भारत और अन्य” के मामले में यह फैसला दिया की शांतिपूर्वक आंदोलन करना तथा इकट्ठा होना नागरिकों का मौलिक अधिकार है जिसका दमन करना उचित नहीं है।
2012 के दिल्ली सामूहिक बलात्कार के विरूद्ध हुए आंदोलन से यह स्पष्ट हो गया कि आम जनता को कम आंकना सरकार के लिए एक गलती से कम नहीं है।
सन 2011 में जब भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता अन्ना हजारे द्वारा आन्दोलन

कामेश्वर सिह बनाम बिहार राज्य (ए आई आर 1972एस सी 1166)

प्रदर्शन या धरना भी अभिव्यक्ति के साधन है किंतु अनुच्छेद 19 (1 )(क) केवल उन्हीं प्रदर्शनों या धरनो को सुरक्षित प्रदान करता है जो हिंसात्मक और उत्च्र्श्र्खल है।

 

आंदोलन करना न केवल एक मौलिक अधिकार है जबकि सरकार व अन्याय के खिलाफ आंदोलन करना हमारा नैतिक कर्तव्य है तथा शांतिपूर्वक आंदोलन को संविधान भी मान्यता देता है। शांतिपूर्वक सभा करना तथा शांतिपूर्वक प्रदर्शन करना एक बहुत ही महत्वपूर्ण अधिकार है तथा हमें हर हाल में इसकी मर्यादा को ध्यान में रखना चाहिए लेकिन इन अधिकारों के साथ भी कुछ निर्बंधन भी लागू है जैसा कि हमने पहले आर्टिकल 19(2) में जाना था। अतः हमें जरूरत पड़ने पर उचित आंदोलन का समर्थन जरूर करना चाहिए लेकिन देश की अखंडता, एकता तथा संप्रभुता हमारे लिए सर्वोपरी होनी चाहिए। आन्दोलन हमेशा नागरिको लोगो के हित के लिय ही होता है लेकिन कुछ लोग उसे राजनीतक रन्ग देने लग जातें है जिससे वे अपनी दिशा खो देते है इसलिय इसका ध्यान रखा जाना चाहिए हमेशा।