माॅब लिंचिंग, भीड़ द्वारा हत्या| Mob Lynching in india

Mob Lynching

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Mob Lynching in india
Mob Lynching in india
  • ‘‘कानून किसी व्यक्ति को मुझसे स्नेह करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता, परन्तु वह उसे लिंच करने से रोक सकता है।’’

-मार्टिन लूथर किंग जूनियर

Mob Lynching in india

Mob Lynching in india

‘‘Mob Lynching in india उभरता हुआ कार्य यह दर्शाता है कि हम उस युग में जी रहे हैं जहाँ संप्रभु लोगों का अपने विषयों पर नियंत्रण नहीं है।

संविधान संशोधन 2021,The constitution amendment

इस के अतिरिक्त न्यायिक हत्या को नियंत्रित करने और छदम् त्वरित न्याय की इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए संविधान को कडे़ कानून की आवश्यकता है क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रत्येक व्यक्ति को जीवन जीने का अधिकार दिया गया है, जिसको ऐसे ही नहीं छीना जा सकता है।‘‘

कानून का मूल उद्देश्य व्यक्ति के क्रियाकलापों पर नजर रखना और समाज को विभिन्न आपराधिक गतिविधियों से बचाना है।

लेकिन Mob lynching एक ऐसा अपराध है जिसमें भीड़ द्वारा समूहिक हिंसा शामिल है जो निर्धारित कानूनों से अलग करता है। यह धीरे-धीरे बड़े पैमाने पर जनता के लिए भय व प्रतिशोध का कारण बन रही है।

यह दर्शाता है कि लोग किसी भी प्रकार के अपराध के लिए त्वरित न्याय कि मांग कर रहे हैं। जिससे मौजूदा कानूनों के लिए खतरा पैदा हो रहा है।

भीड़ की यह असहिष्णुता जो लिंचिंग के रूप में तेजी से बढ़ते पेमाने पर देखी जा सकती है, राष्ट्र के नागरिकों के मध्य अराजकता और अराजकता की गम्भीर स्थिति पैदा कर रही है।

अब राष्ट्र जिम्मेदारी से कार्य करने के लिए बाध्य है। लिंचिंग के कार्यो को सर्वोतम सम्भव तरीके से परिभाषित नहीं किया जा सकता है। फिर भी महात्मा गाँधी का कथन यह कि ‘‘एक आंख के लिए एक आंख पूरी दुनिया को अंधा कर सकती है।’’ 

लिंचिंग जिसे ‘‘भीड़तंत्र की घिनौनी हरकतें’’ कहा जाता है, का मूल स्थान संयुक्त राज्य अमेरिका है। संयुक्त राज्य अमेरिका में अब तक 200 से अधिक एंटी-लिंचिंग बिल रखे गए है।

पिछले वर्षो में Mob Lynching in india भीड़ हिंसा से संबंधित अपराधों में जबरदस्त वृद्धि हुई है और धर्म, गौ हत्या, बच्चा चोर, अपहरण, दलित आदि के नाम पर लिंचिंग का कार्य प्रतिदिन बिना किसी विचार के किया जा रहा है।

चूँकि एक गिरोह के पास कोई चेहरा नहीं होता है इसलिए आमतौर पर दर्जनों में और कई सौ में वे कानून को अपने हाथ में लेने की हिम्मत करते हैं और परिणामस्वरूप गलत कार्य करते हैं,

भीड़ के मनोविज्ञान के ऊपर चर्चा एक अलग तरह की घटना के तौर पर शुरू हुई, जब हम फ्रांसीसी क्रान्ति की भीड़ को इसका उदाहरण मानते थे, तब भीड के मनोविज्ञान में एक काले व्यक्ति को सफेद लोगों की भीड़ द्वारा मारने का पुराना मसला ही चर्चा का विषय होता था।

यहाँ तक की गाॅर्डन आलपोर्ट और रोजर ब्राउन जैसे बड़े मनोवैज्ञानिक भी भीड़ के मनोविज्ञान को एक सम्मानजनक विषय नहीं बना सकें कुछ लोग इसे समाज विज्ञान, मनोविज्ञान और पैथोलाॅजी के तौर पर और अनियमित घटनाओं के रूप में सीमित रखते हैं।

‘‘कानून, एक सभ्य समाज में सबसे शक्तिशली संप्रभु।’’

 

1 (कृष्णमूर्ति बनाम शिवकुमार और ओआरएस।)

एक समाज को तभी सभ्य कहा जा सकता है जब वह उचित वैधानिक कानूनों द्वारा शासित होता हो। कानून को लागू करने का पहला और महत्वपूर्ण उद्देश्य समाज को उस स्थिति में लाना है जहां देश का नागरिक उचित स्वतंत्रता और प्रगति का सपना देख सके।

लेकिन स्वतंत्रता के साथ-साथ हमेशा जिम्मेदारी आती है इसलिए प्रत्येक नागरिक संप्रभु की आज्ञा का पालन करने के लिए बाध्य होता है।

लिखितरूप में कानून को लागू करने और निष्पादित करने को केवल इसलिए नहीं रोका जा सकता है क्योंकि एक व्यक्ति या एक समूह इस रवैये को उत्पन्न करता है कि वे कानून द्वारा निर्धारित सिद्धान्तों को अपने हाथों में ले लेते हैं और धीरे-धीरे खुद के लिए कानून बन जाते हैं और व्यक्ति को दंड़ित करते हैं।

 

2 तहसीन एस पूनावाला बनाम भारत संघ

2018 के इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता तहसील पूनावाला ने उच्चतम-न्यायालय में याचिका दायर कर गोरक्षा के नाम पर कानून अपने हाथ में लेने वाले गोरक्षकों और माॅब लिंचिंग पर कारवाई की मांग की थी।

जिस पर कोर्ट ने ऐसी हिंसाओं को रोकने के लिए 11 बिन्दुओं के दिशा-निर्देश जारी किए जो ‘‘निवारक, उपचारात्मक और दण्डात्मक।’’

रिपोर्ट

3. ‘दी क्विंट की एक रिपोर्ट’ – के मुताबिक 2015 में अब तक भारत में भीड़ द्वारा हत्या ( Mob Lynching in india ) के 94 मामले सामने आ चुके हैं, और यदि उसमें मुरादाबाद के आलियाबाद गाँव के गंगाराम की हत्या को जोड़ दे तो यह संख्या 95 हो जाती है, इन पीड़ितों में प्रायः सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के लोग शामिल है,

4. इंडियास्पेंड की एक रिपोर्ट – के मुताबिक वर्ष 2012 से 2019 तक सामुदायिक घृणा से प्रेरित ऐसी 128 घटनाएँ हो चुकी है। जिनमें 47 लोगों की मृत्यु हुई है और 175 लोग गंभीर रूप से घायल हुए है।

5. इंडियास्पेंड की एक अन्य रिपोर्ट – के मुताबिक Mob Lynching in india में एक जनवरी, 2017 से 5 जुलाई 2018 के बीच दर्ज 69 मामलों में केवल बच्चा-चोरी की अफवाह के चलते 33 लोग भीड़ द्वारा मारे जा चुके है और 99 लोग पीट-पीटकर गंभीर रूप से घायल किए जा चुके है, जाहिर है इनमें से कुछ हत्याएँ ही राजनीतिक सुभीते के आधार पर राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन पाती है।

अक्सर हमें ये सुनने को मिलता है की फलां जगह पर किसी व्यक्ति को भीड द्वार पीट-पीट कर मार डाला गया। mob lynching एक तरह का भीडतंत्र का प्रतीक है जिसमेें कानून व्यवस्था को ताक पर रखकर जनता स्वयं अपराधी को सजा देना चाहती है।

लिंचिंग में जिससे भीड को किसी ना किसी विषय पर पहले भडकाया जाता है और उनको विश्वास में लेकर धर्म या जाति के नाम पर या समाज में किसी डर के नाम पर इक्कठा किया जाता है जिससे भीड का गुस्सा उस गलत काम को अंजाम देता है।

भीड़ का मनोविज्ञान सामाजिक विज्ञान का एक छोटा-सा हिस्सा रहा है, यह एक अजीब और पुराना तरीका है जिसकी प्रासंगिकता समाज में स्थिरता आने और कानून-व्यवस्था के ऊपर भरोसे के बाद खत्म होती गई।

 

इतनी भीड आती कहा से है ?

आजकल सबसे ज्यादा भीड़ इक्कठा करने में मदद सोशियल मिडिया से मिलती है। भीड़ को कब कहा और इक्कठा करना है सोशियल मिडिया ये काम बहुत आसानी से हो जाता है और लोग इस लिचिंग का हिस्सा बना जाते है।

ये बात तो साफ है कि अफवाहे महामारी की तरह फैलती है और लोगों में डर और चिंता भरती है जो बाद में हिंसा का रूप से लेता है और ये लोग mob lynching का हिस्सा बन जाते है, मोब लिंचिंग में पलायन एक समस्या है,

इसके चलते रोजगार के अवसर तलाशते हुए किसी इलाके में बाहरी लोगों की संख्या बढ़ जाती है, जो समाज में हाशिये पर होता है, परन्तु कई बार भीड़ द्वार अविश्वास और डर के करण इन बाहरी लोगों को mob lynching का शिकार बना दिया जाता है।

भीड़ जुटाने वाली इस डिजिटल हिंसा को एक अलग तरह की समझ की जरूरत है। जान लेने वाली ये भीड़ सोशल मीड़िया के नियमों पर चलती है और भीड को इक्कठा कर हिंसा को आगे बढ़ाती है।

भारत के इस मौखिक, लिखित और डिजिटल दौर में इन तीनों से हिंसा का खतरा और ज्यादा बढ़ सकता है।

जहाँ लोग सिर्फ अफवाहों पर भरोसा करते है तकनीक की रफ्तार और भीड़ की तर्कहीनता बदलते समाज का खतनाक लक्षण है जो मोब लिंचिंग जैसे अपराधों को पढ़ाता है।

Mob lynching माॅब लिचींग क्या है ?

लिंच शब्द का अर्थ है ‘‘कानूनी मुकद्दमे का पालन किए बिना एक कथित अपराध के लिए व्यक्ति का जीवन समाप्त करना।’’

एक भीड़ द्वारा अफवाहों के असर में आकर भय और चिंता के कारण किसी बेगुनाह को पीट पीट कर मार दिया जाता है उसी को लिन्चींग या हिस्सा कहा जाता है।

इस तरह की हिंसा में किसी कानूनी प्रक्रिया या सिद्धान्त का पालन नहीं किया जाता और यह पूर्णतः गैर-कानूनी होती है।

Mob Lynching के कारण

गाय चैकसी का उदय – जब से देश की सरकार ने भारत भर में पशु वध के लिए मवेशियों की बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगाया है, क्रुरता की रोकथाम के पशु कानून (26 मई 2017) के तहत, राष्ट्र में गाय के प्रतिशोध के एक चरण् को जन्म दिया जिससे वह आगे बढ़ गया।

राजनीतिक वर्ग की गैर-भागीदारी- भीड़ की हिंसा में इस वृद्धि का राजनीतिक दलों और नौकरशाहों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है और वे इस कारण से चुप रहने का विकल्प चुनते हैं।

बाल-अपहरण का डर – बाल अपहर्ताओं की अनावश्यक अफवाहें भीड़ की हिंसा के लिए एक प्रज्वलन बिन्दु साबित हुई। जहाँ व्हाट्सप पोस्ट राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, आसाम, ओडिशा, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में प्रसारित किए गए थे।

अल्पमत में सरकार और वैकल्पिक उपाय Horse trading

भारत में भीड़ द्वारा हत्या के निम्नलिखित ऐतिहासिक मामलें निम्न है –

वर्षपीड़ित व्यक्तिजातिसम्बन्धस्थान व राज्य
28 सितम्बर, 2015 मोहम्मद अखलाकमुस्लिमगौमासं खाने के सम्बन्ध      दादरी, उत्तर प्रदेश
18 मार्च, 2016                 मजलूम अंसारी इक्तिया खान  मुस्लिमगौतस्करीझारखंड
5 अप्रैल, 2017पहलू खान               मुस्लिमगौहत्यानूह, हरियाणा घटना राजस्थान
29 जनवरी, 2017अलीमुद्दिन उर्फ असगर अंसारीमुस्लिमगौमांस ले जाने के सम्बन्ध मेंझारखंड
30 जुलाई, 2018      रकबर खान   मुस्लिमगौतस्करी     अलवर राजस्थान  
20 अप्रैल, 2020      सुशीलगिरी महाराष्ट्र कल्पवृक्षगिरी   हिन्दू  बच्चा चोर समझ कर   पालघर महाराष्ट्र

’भारत में माॅब लिचिंग पहला मामला जनवरी 1999 में ग्राहम स्टेस का ओडिशा में आया था।

माॅब लिंचिंग से सम्बन्धित संवैधानिक प्रावधान

भारतीय दंड संहिता, 1860आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973
1. धारा 34 (सामान्य आशय)1. धारा 223(ए)
2. धारा 120। (आपराधिक षडयन्त्र)  2. धारा 144
3. धारा 141 (विधिविरूद्ध जमाव)     
4. धारा 147,148,149 (उपद्रव बल्वा दंगा)   
5. धारा 300,302 (हत्या व हत्या के लिए दंड)       
6. धारा 304 (गैर इरादतन हत्या)     
7. धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना)      
8. धारा 325 (स्वेच्छा से गम्भीर चोट पहुंचना) 

भारत के विभिन्न राज्यों में माॅब लिचिंग से सम्बन्धित बनाये गये अधिनियमों कि स्थिति-

वर्ष  राज्य अधिनियम   पारित या लागू
2018मणीपुर‘‘मणिपुर भीड हिंसा से संरक्षण विधेयक, 2018’’पारित
2019राजस्थान     ‘‘राजस्थान लिचिंग से संरक्षण विधेयक 2019’’     पारित
2019पश्चिम बगांल‘‘द वेस्ट बगांल (प्रीवेशन आॅफ लिचिंग) बिल 2019’’    पारित

सुझाव / अनुशंसाएँ-

  • सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को लागू करें और यह सुनिश्चित करें कि भीड़ के हमलों के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को जवाबदेह ठहराया जाए।
  • सांप्रदायिक हमलों के दोषियों और इसे भड़काने वालों के खिलाफ त्वरित और निष्पक्ष जांच और अभियोजन सुनिश्चित करें और गौरक्षकों की हिंसा रोकने मंे कथित पुलिस निष्क्रियता की जांच करें।
  •  सरकार द्वारा अफवाहों को रोकने के लिये जल्द ही एक सोशल मीडिया पाॅलिसी बनाये एवं देश के आईटी मंत्रालय को इसका ड्राफ्ट तैयार करने का जिम्मा सौंपा जाये।

 

शब्द कूंजी: माॅब लिचिंग, संवैधानिक कानून, सभ्य समाज, नागरिक त्वरित न्याय, गौहत्या, भीड़ द्वारा हत्या, बढ़ती असहिष्णुता, फेक न्यूज।

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